Steve job biography in hindi

Steve job

   
परिचय

वाल्टर आइजेकसन is book ke author को जब पता लगा कि स्टीव जॉब्स कैंसर के Last Stage में है तब जाकर वे स्टीव जॉब्स की biography लिखने को तैयार हुए. बेहद होनहार और तेज़ दिमाग वाले स्टीव जॉब्स साल 2004 से आइजेकसन को अपनी जिंदगी पर एक किताब लिखने के लिए मना रहे थे मगर उनकी कोशिश 2009 में जाकर कामयाब हो पाई जब जॉब्स कैंसर से जूझते हुए अपनी दूसरी मेडिकल लीव पर थे |
Year 1984 के वक्त से ही टाइम्स मेगेज़ीन में बतौर मेनेजिंग डायरेक्टर आइजेकसन को कई बार जॉब्स से मिलने का मौका मिला. मगर उस महान इनोवेटर स्टीव ने जब पहली बार आइजेकसन से खुद की biography likhne ke liye kaha तो आईजेकसन उस दौरान अल्बर्ट आइनस्टीन पर लिख रहे थे और बेंजामिन फ्रेंकलिन पर उनकी लिखी किताब पहले ही famous हो चुकी थी. जॉब्स का प्रस्ताव आइजेकसन ने ये कहकर ठुकरा दिया कि  “जॉब्स अभी सफलता की सीडिया चढ़ ही रहे है और अभी वो वक्त नहीं आया कि उनपर कोई किताब लिखी जा सके”.
लेकिन ये जॉब्स की पत्नी लौरीन पॉवेल (Laurene Powell) की कोशिशो का ही नतीजा था जो उनसे जॉब्स की बिमारी के बारे में जानकर आइजेकसन ने अपना मन बदल लिया और आखिरकार इस काम के लिए तैयार हो गए. जॉब्स का कैंसर का ओपरेशन होना था. बावजूद इसके वे खामोशी से लड़ रहे थे. एक और बात जिसने आइजेकसन को बहुत प्रभावित किया वो ये थी कि जॉब्स ने उन्हें किताब अपने तरीके से लिखने की छूट दी थी. उन्होंने author के काम में कभी किसी तरह की दखलअंदाजी नहीं की. फ्रेंकलिन और आइन्स्टाइन की तरह ही स्टीव जॉब्स ने भी साइंस और इंसानियत दोनों की तरक्की के लिए अपनी क्षमताओं का बेहतर उपयोग किया था. इंजीनियरिंग दिमाग ke saath saath jobs creative bhi the aur  इन्ही खूबियों का तालमेल से एक महान इनोवेटर बनता है जो कि वे खुद है. जॉब्स अपनी इसी रचनाशीलता से पर्सनल कम्प्यूटर की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव ला पाए. सिर्फ इतना ही नहीं music , डिजिटल पब्लीशिंग और एनिमेटेड मूवीज में भी उनकी बदौलत एक नए दौर की शुरुवात हुई. बेशक उनकी personal life या unki personality एक मुक्कमल तस्वीर नहीं बनाती मगर फिर भी वे अपने काम से हमेशा लोगो की जिंदगी प्रभावित करते रहेंगे और inspiration ka source बने रहेंगे.

बचपन
छोटी उम्र में ही स्टीव जॉब्स jaan चुके थे कि उन्हें गोद लिया गया है. और ये बात उनके पिता पॉल जॉब्स और माँ क्लारा हागोपियेन (Clara Hagopian) ने उनसे कभी भी नहीं छुपाई. जन्म के बाद से ही उन दोनों ने स्टीव को पाला था.  Jab steve jobs 4 saal ke the vo apne padosi ke ghar par ek ladki ke saath khel rhe the. AUr steve ne us ladki ko bataya ki unhe adopt kiya gaya hai. Is baat par vo ladki boli ki iska matlab to hai ki tumhare asli maa baap tumhe pasand nhi karte the, isiliye unhone tumhe chodha. Is par steve jobs bhaag kar apne ghar gaye aur ye baat unhone apne parents ko batayi. Ispar unke parents ne unhe kaha ki suno steve “humne tumhe isiliye chuna tha  kyunki tum sabse alag ho bhaut ख़ास ho, special ho”. और शायद इसी वजह से स्टीव आत्मनिर्भर और मजबूत इरादों के इंसान बन पाए|

उनके कार मेकेनिक पिता उनके पहले हीरो थे. बचपन में ही स्टीव जॉब्स इलेक्ट्रोनिक्स में kafii interested the. हालांकि वे पढ़ाई में कभी bhaut ache नहीं रहे. क्लास में बैठना उन्हें अक्सर boring लगता था. अपने हुनर से वे अक्सर कुछ ना कुछ शरारत भरा किया करते. और ये सिलसिला ग्रेड स्कूल से लेकर कोलेज तक चलता रहा.

वोजनिएक Wozniak
(Homestead Highहोम्सस्टेड हाई में एक कॉमन friend के ज़रिये स्टीव वोजनिएक और स्टीव जॉब्स की मुलाक़ात हुई. दोनों स्टीव्स बचपन से ही इलेक्ट्रोनिक्स और मशीन में गजब के प्रतिभाशाली थे. जहाँ स्टीव जॉब्स अपने पिता की ही तरह एक businessman बनना चाहते थे, वहीँ स्टीव वोज (Steve Woz) के पिता जिन्हें मार्केटिंग से चिढ़ थी उन्होंने उन्हें इंजीनियरिंग में कुछ बेहतरीन करने के लिए प्रेरित किया |
उम्र में जॉब्स से 5 साल बड़े होने के बावजूद वोज बेहद शर्मीले और हद से ज्यादा पढ़ाकू थे. अपने कॉमन दोस्त की गैराज में वे जॉब्स से पहली बार मिले थे. इलेक्ट्रोनिक्स में गहरी रूचि के साथ ही बॉब डायलन ke music ने भी उनकी जोड़ी जमा दी थी.

कालेज ड्राप आउट College drop-out
जहाँ वोजनियेक ने बर्कली युनिवेर्सिटी जाने के फैसला कर लिया था वहीँ जॉब्स अभी confusion में ही थे कि अपने लिए कौन सा कॉलेज चुने. क्योंकि स्टीव जॉब्स ke asli parents ne unhe isi शर्त पर गोद दिया था कि उनकी स्कूली पढ़ाई पूरी कराई जायेगी. इसलिए उनके adoptive parents को उनकी कॉलेज फीस जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी.

जॉब्स ने फैसला किया कि वे नजदीकी स्टेंडफोर्ड युनिवेर्सिटी नहीं जायेंगे. वे किसी ऐसी जगह जाना चाहते थे जो उससे ज्यादा artistic और interesting हो. मगर उनके इस फैसले को उनके parents की मंज़ूरी नहीं मिली बावजूद इसके जॉब्स ने रीड कॉलेज, पोर्टलैंड ऑरेगोन में दाखिला ले लिया. सिर्फ एक हजार students वाला ये एक कॉलेज बड़ा महंगा था. और फिर अपने हिप्पी कल्चर के लिए मशहूर भी था.
रीड कॉलेज में पढने के दौरान कुछ ही समय बाद जॉब्स को लगा कि जो कोर्स उन्होंने चुना था वो उनके सपनो के आड़े आ रहा था. जो चीज़े वो सीखना चाह रहे थे, नहीं सीख पा रहे थे. और तब उन्होंने कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया. अब वो जो पसंद आता वही सीखने लग जाते जैसे कि कैलीग्राफी. रीड में पढ़ाई के दौरान उन्हें हिप्पी कल्चर पसंद आने लगा था. जेन बुधिस्म पर उन्होंने सैकड़ो किताबे पढ़ डाली और pure vegetarian ban gaye. उन्होंने बाल कटवाना छोड़ दिया था और पूरे केम्पस में नंगे पाँव घूमा करते. 

एप्पल I
स्टीव वोजनिएक और स्टीव जॉब्स ने कई तरह के छोटे मोटे स्टार्टअप बिजनेस किये. जहाँ वोजनिएक अपने बनाये डिजाएन केवल बेचने तक सिमित थे वहीँ जॉब्स कुछ ऐसे प्रोडक्ट बनाकर बेचना चाहते थे जो unique ho aur unse paise kamaye jaa sake.

सबसे पहले तो उन्हें एक नाम तय करना था. मेट्रिक्स जैसे टेक्नोलोजीकल और पर्सनल कंप्यूटर इंक जैसे कुछ boringनाम उनके दिमाग में आये भी मगर फिर एप्पल नाम उन्हें interesting laga जो कुछ अलग लग रहा था. इस नाम को चुने जाने की वजह सिर्फ यही नहीं थी कि जॉब्स एक एप्पल फार्म में घूमकर आये थे बल्कि सुनने में एप्पल कंप्यूटर नाम बड़ा मजेदार और शानदार लगता था.
उस वक्त तक वोज HP (एच पी) के लिए काम कर रहे थेउन्होंने वहां अपना बनाया सर्कट बोर्ड (circuit board)लगाना चाहा . उनका ये प्रोडक्ट नया था और पहले कभी इस्तेमाल नहीं हुआ था इसलिए उसे नकार दिया गया.इससे निराश होकर वोज ने फिर जो भी प्रोडक्ट बनाये वे 100 फीसदी सिर्फ एप्पल के लिए बनाये. जॉब्स का यही मानना था कि उनकी team isiliye perfect thi kyunki vo dono opposite the. एक ओर वोज जहाँ बहुत प्रतिभाशाली तो थे मगर लोगो से मिलने-जुलने में कतराते थे, वहीँ जॉब्स ki खासियत थी कि वे किसी से भी बातचीत कर सकते थे और अपना काम निकलवाने में माहिर थे.
एक कंप्यूटर स्टोर का मालिक, पॉल टेरेल उनका पहला ग्राहक बना. उसने उन्हें $500 per piece के हिसाब से 50 सर्कट बोर्ड का आर्डर दिया. क्रेमर इलेक्ट्रोनिक्स (Cramer Electronics) के मेनेजेर को विश्वास में लेकर उससे $25,000 का उधार लेने के बाद जॉब्स, वोज और उनकी बहन पैटी, अपनी पूर्व प्रेमिका एलिज़बेथ होम्स और एक दोस्त डेनियल कोट्के के साथ मिलकर काम में जुट गए. और इस तरह लोस एल्टोस में जॉब्स के घर की गैराज से एप्पल की शुरुवात हुई.

लीज़ा
पूरे 5 साल तक क्रिसेन् ब्रेनन (Chrisann Brennan) के साथ जॉब्स कभी हां कभी ना वाले रिश्ते में बंधे रहे. एप्पल की शुरुवात बहुत सफल रही. जॉब्स अब अपने माँ-बाप का घर छोड़कर कपरटीनो (Cupertino) के एक $600 वाले rented ghar में रहने लगे थे. ब्रेनन अब उनकी जिंदगी में वापस आ चुकी थी. दोनों अब साथ रहने लगे थे.  Jab दोनों ही अपने 23वे साल में थे ब्रेनन,, जॉब्स के बच्चे की माँ बनने वाली थी.
हालांकि जॉब्स का सारा ध्यान सिर्फ अपनी कंपनी पर था. वे अभी घर गृहस्थी में बंधना नहीं चाहते थे. ब्रेनन और उनके बीच अब झगडे शरू हो गए थे. इस बच्चे का आना उनके रिश्ते में खटास पैदा कर रहा था. जॉब्स के मन में कभी भी शादी का ख्याल नहीं था और उन्होंने इस बच्चे का पिता होने से भी इंकार कर दिया. इस सबके बावजूद ब्रेनन ने हार नहीं मानी. उनके कुछ दोस्त इस मुश्किल दौर में उनके साथ रहे और 17 मई, 1978 को ऑरेगोन में उन्होंने लिजा निकोल को जन्म दिया.
माँ और बच्चा मेनलो पार्क के एक छोटे से घर में रहने लगे. वेलफेयर में मिलने वाली रकम से उनका गुज़ारा चल रहा था. जब लिजा एक साल की हुई तो जॉब्स को उन्ही दिनों चलन में आये डीएनए (DNA) टेस्ट से गुज़रना पड़ा जिसका result tha ki 94.41% chance hai ki steve hi lisa ke baap hai.  ye  साबित हो जाने पर केलिफोर्निया कोर्ट ने उन्हें लिजा के पालन पोषण के लिए monthly child support देने का हुक्म दिया. हालांकि कोर्ट के हुकम से वे अब जब चाहे अपनी बेटी से मिल सकते थे मगर बावजूद इसके वे कभी भी उससे मिलने नहीं गए.


1981
1977 में एप्पल ने शुरुवाती दौर में 2,500 यूनिट्स बेचे और 1981 में उनकी बिक्री बढ़कर 210,000 हो चुकी थी. हालांकि जॉब्स को अच्छी तरह मालूम था कि सफलता का ये दौर हमेशा रहने वाला नहीं है. Isiliye उन्होंने एक नये प्रोडक्ट के बारे में सोचा जो एप्पल II से ज्यादा बेहतर हो. वे एक ऐसा डिजाईन चाहते थे जो पूरी तरह से उनका अपना बनाया हो.
अपनी बेटी के साथ अपना रिश्ता नकारने के बावजूद उन्होंने अपने नए कंप्यूटर का नाम लीज़ा रखा. दरअसल इसे बनाने वाले इंजीनियर्स को इससे मिलता जुलता एक्रोनिम सोचना पड़ा. लीज़ा का मतलब था लोकल इंटीग्रेटेड सिस्टम आर्किटेक्चर(Local integerated system architecture).

एप्पल में 100,000 शेयर्स के बदले Xerox PARC ने अपनी एकदम नयी टेक्नोलोजी जॉब्स और उनके प्रोग्रामर्स को बेच दी. कुछ मुलाकातों के बाद ही एप्पल के इंजीनियर्स Xerox  कंप्यूटर के माउस डिजाईन और इंटरफेस की नक़ल बनाने में कामयाब रहे. लिजा को पहले से बेहतर ग्राफिक्स और स्मूथ स्क्रोलिंग माउस फीचर के साथ बाज़ार में उतारा गया.

IPO
दिसम्बर 12, 1980 में पहली बार एप्पल को दुनिया के सामने पेश किया गया. मॉर्गन स्टेनले इसके IPO को संभालने वाले बैंको में से एक था. रातो-रात एप्पल के शेयर का दाम $22  से बढकर $29 हो गया. सिर्फ 25 साल के हिप्पी कॉलेज ड्राप आउट स्टीव जॉब्स अब करोडो के मालिक बन चुके थे. इतनी बड़ी सफलता के बावजूद उन्होंने दिखावट से दूर एक सादा जीवन जीना पसंद किया.
जॉब्स ने अपने माता-पिता के नाम $750,000 कीमत वाले एप्पल के स्टोक कर दिए थे जिससे उन्हें loans से छुटकारा मिला. वे अब magazines के कवर पर आने लगे थे. उन्होंने पहली कवर स्टोरी अक्टूबर 1981 में Inc के लिए की थी.इसके तुरंत बाद ही 1982 में टाइम्स मेगेज़ीन में भी उनकी कवर स्टोरी आई. इसमें 26 साला एक नौजवान के करोडपति बनने के सफ़र की कहानी थी जिसने महज 6 साल पहले ही अपने माता-पिता के गैराज से अपनी कंपनी की शुरवात की थी.

मैकिन्टौश (Macintosh)
अपने आक्रामक व्यवहार के चलते जॉब्स, लीजा प्रोजेक्ट से जबरन हटा दिए गए थे. इसी दौरान जेफ़ रस्किन(Jef Raskin) नामक एप्पल के एक इंजीनियर एक ऐसा बेहद सस्ता कंप्यूटर बनाने में जुटे थे जिसे कोई भी खरीद सकता था. और अपने इस प्रोजेक्ट का नाम उन्होंने मेकिनतोष रखा जो उनके पसंदीदा सेब की एक किस्म का नाम था.
अब क्योंकि जॉब्स लीज़ा वाला प्रोजेक्ट खो चुके थे तो उनका सारा ध्यान रस्किन के प्रोजक्ट पर लगा रहा. रस्किन का सपना एक ऐसा सस्ता कंप्यूटर बनाने का था जो स्क्रीन और की-बोर्ड के साथ महज़ $1,000 की लागत का हो. जॉब्स ने उनसे कहा कि वे सिर्फ मैकिन्टौश बनाने पर ध्यान दे और कीमत की फ़िक्र ना करे.
मगर रस्किन मेकिनतोष पर काम पूरा नहीं कर पाए. पर सयोंग से जॉब्स ने एक दूसरा इंजीनियर ढूंढ कर उसकी मदद से ऐसा डिवाइस बनाया जो कुछ महंगे मगर पहले से बेहतर माइक्रो-प्रोसेसर पर काम कर सके. मैक लीज़ा से भी बेहतर माउस और ग्राफिक इंटरफेस के साथ बाज़ार में उतरा.
जॉब्स ना केवल एक तेज़ दिमाग वाले इंजीनियर थे बल्कि एक extraordinary डिज़ाइनर भी थे. उनके लिए प्रोडक्ट डिजाईन किसी कला से कम नहीं था. “सिम्पल इज सोफेस्टीकेटेड” यही मैक और एप्पल का मोटो था.
वे चाहते थे कि मैक एक छोटे से पैकेज में आ सकने लायक हो जो अन्दर बाहर से बेहद आधुनिक लगे. इसके अलावा उन्होंने मैक के विंडोज, आइकॉन्स, फोंट्स और बाहरी पैकेजिंग की डिजाईन पर भी ख़ास ध्यान दिया था.
अनगिनत प्रपोजल और रीवीजंस के बाद जॉब्स ने अपनी पूरी डिजाईन टीम के एक पेपर पर signature karvaye. इन सभी 50 signatures को हर मैकिन्टौश कंप्यूटर के अन्दर खुदवाया गया. मैक के design aur technology की ख़ुशी का एक जश्न मनाया गया.

माइक्रोसोफ्ट
बिल गेट्स और स्टीव जॉब्स ने मिलकर एक एग्रीमेंट किया. ये एग्रीमेंट मैकिन्टौश को माइक्रोसोफ्ट सोफ्टवेयर के साथ तैयार करके बाज़ार में लाने के बारे में था. और शर्त थी कि प्रोग्राम में एप्पल का लोगो ज़रूर रहेगा. लेकिन ये सांझेदारी टिक नहीं पाई. इस मुद्दे पर बातचीत के दौरान जॉब्स और गेट्स की अक्सर बहस हो जाया करती थी.
गेट्स ka background जॉब्स से बिलकुल अलग tha. उनके पिता वकील थे और माँ एक सिविक लीडर थी. गेट्स अपने ख़ास तबके वाले प्राइवेट स्कूल के वक्त से ही टेक्नोलोजी के कीड़े रहे थे. और उन्होंने जॉब्स की तरह कभी कोई प्रेंक नहीं खेला था. हार्वर्ड की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर गेट्स ने अपनी खुद की सॉफ्टवेयर कंपनी शुरू कर ली थी.
जॉब्स दूरदर्शी व्यक्ति थे जिनमे अपने काम के प्रति दीवानगी थी और इसी वजह से कभी-कभी उनका लहज़े में एक रूखापन आ जाता था. इसके उलट बिल गेट्स discipline के पक्के थेpractical थे जो सोच समझ कर कदम उठाते थे. ये सयोंग था कि दोनों का ही जन्म 1955 में हुआ था. दोनों ही कॉलेज ड्राप आउट थे जो पर्सनल कंप्यूटर की दुनिया में एक क्रान्तिकारी बदलाव लाये थे.

गेट्स माइक्रोसोफ्ट सॉफ्टवेयर को अलग-अलग तरह के प्लेटफॉर्म में खोलना चाहते थे. मगर जॉब्स चाहते थे कि एप्पल के लिए अलग से कुछ खास सोफ्टवेयर रहे. उनका ये मतभेद चलता रहा और आख़िरकार उनके इस मतभेद का फायदा आई बी एम (IBM) के पर्सनल कंप्यूटर्स को हुआ.

माइक्रोसॉफ्ट ने पहले अपना ऑपरेटिंग सिस्टम -डीओएस (DOS) निकाला और बाद में विंडोज 1.0.  इस पर जॉब्स ने कहा था” माइक्रोसोफ्ट की समस्या ये है कि उनके अन्दर creativity की कमी है, उनके आइडियाज़ ना तो असली होते है ना ही उनके प्रोडक्ट में कोई कल्चर होता है”

 
त्यागपत्र

लीजा प्रोजेक्ट जॉब्स के हाथो से छीनकर उन्हें बोर्ड का नॉन- एक्जीक्यूटिव सदस्य बना दिया गया था. बेशक उनके पास एप्पल के 11% शेयर थे फिर भी उनके पास अब ज्यादा अधिकार नहीं रहे.1985 में उन्होंने प्रेजिडेंट जॉन स्क्ली से कहा कि वे एक अलग कंपनी खोलना चाहते है. जॉब्स ने कहा कि उनकी ये कम्पनी एप्पल से अलग होगी मगर उसकीcompetitor नहीं होगी.
जॉब्स ने अपनी इस नयी कंपनी का नाम नेक्स्ट NeXT रखाउन्होंने स्क्ली से कहा कि उन्हें 5 लो लेवल employeesचाहिए जिन्हें वे नेक्स्ट में रख सके. जब जॉब्स ने स्क्ली को 5 कर्मचारियों के नाम बताये तो स्कली नाराज़ हो गए क्योंकि जिन लोगो के नाम जॉब्स ने सुझाये थे, वे बिलकुल भी लो लेवल के नहीं थे. बोर्ड मेम्बर को लग रहा था कि जॉब्स अब कंपनी के प्रति ईमानदार नहीं रहे और एक चेयरमेन के तौर पर अपने फ़र्ज़ से मुंह मोड़ रहे है. सबने एकजुट होकर जॉब्स का विरोध करने का निर्णय लिया.
मीडिया में इस बात की चर्चा जोरशोर से होने लगी कि जॉब्स को चेयरमेन के पद से निकाला जा रहा है. मगर त्यागपत्र का ख्याल उनके मन में तब से ही था जब उन्होंने नेक्स्ट के बारे में सोचा था. आखिर में उन्होंने एक्जीक्यूटिव माइक मर्क्कुला(Mike Markkula) को अपना त्यागपत्र मेल कर दिया.
जॉब्स के त्यागपत्र की ये कुछ पंक्तिया थी  ”अब कंपनी एक ऐसा रवैया दिखाती नजर आ रही है जो मेरे और मेरे new venture ke liye safe नहीं लग रहा है....जैसा कि आप जानते है कि कंपनी की नयी guidelines में मेरे लिए करने को कुछ अधिक नहीं बचा, यहाँ तक कि रेगुलर मेनेजमेंट रिपोर्ट पर भी मेरा कोई अधिकार नहीं रह गया है. मै अभी सिर्फ 30 का हूँ और बहुत कुछ हासिल करने की इच्छा रखता हूँ “.


PIXAR और टॉय स्टोरी

जोर्ज लुकास (George Lucas) अपने कंप्यूटर डिवीज़न के लिए किसी खरीददार की तलाश में थे. एक दोस्त ने जॉब्स को सलाह दी कि उन्हें लुकास फ़िल्म कंप्यूटर डिवीज़न के प्रमुख एड केटमल (Ed Catmull) से मिलना चाहिए. जॉब्स टेक्नोलोजी के साथ आर्ट ko milane me bhaut zaada interested the. जब वे डिवीज़न गए तो वहां का काम देखकर पूरी तरह हैरान रह गए.
डिवीज़न मुख्य रूप से डिजिटल इमेजेस के लिए सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर बेच रहा था. दूसरी तरफ यहाँ पर एनीमेटर्स(animators) थे जो शोर्ट फिल्म्स बनाया करते थे. इस छोटी सी एनिमेशन टीम के मुखिया थे जॉन लासेटर (John Lasseter). जॉब्स ने तुरंत ही ये डील पक्की कर ली और 70 % शेयर उनके हो गए.
इस डिवीज़न का सबसे ख़ास प्रोडक्ट था PIXAR इमेज कंप्यूटर. और इसलिए नयी कंपनी का नाम भी PIXAR रखा गया. इसके 3डी ग्राफिक इमेजिंग सोफ्टवेयर में डिज्नी ने बहुत रूचि दिखाई. उन दिनों डिज्नी का एनिमेशन डिपार्टमेंट बुरी हालत में था. PIXAR का सोफ्टवेयर पहली बार डिज्नी के “लिटिल मरमेड” में इस्तेमाल किया गया.
इसी बीच जॉन लासेटर (John Lasseter) और जॉब्स मिलकर एक ऐसी कहानी सोच रहे थे जो बेजान चीजों की भावनाओं के बारे में हो. लासेटर एक होनहार एनिमेटर थे जो केलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ आर्ट् से पढ़कर निकले थे. जब टॉय स्टोरी को बेशुमार सफलता मिली तो एक असमंजस पैदा हुआ कि ये डिज्नी की फिल्म हो या John Lasseter की| तब जॉब्स डिज्नी के साथ टॉय स्टोरी और बाकी की एनीमेशन फिल्मो के मालिकाना हक़ में बराबर की हिस्सेदारी के लिए तैयार हो गये.

मोना और लिजा

सन 1980 से ही जॉब्स गुपचुप तरीके से अपने असली माँ-बाप की तलाश में जुटे हुए थे और इसके लिए उन्होंने जासूसीसेवा की मदद ली. और आखिरकार उन्होंने अपनी असली माँ को ढूंढ निकाला. उनकी माँ का नाम (Joanne Schiebleजोंने शीबले था और वो लोस एंजेलस में रहती थी. जोंने स्टीव के असली पिता अब्दुलफताह जन्दाली(Abdul Fattah Jandali) से अलग रहती थी जो कि एक सीरियन थे. उनकी शादी सफल नहीं रही थी. मगर उन्होंने जॉब्स को बताया कि मोना सिम्पसन नाम की उनकी एक हाफ सिस्टर भी है.

जॉब्स मोना से न्यू यॉर्क में मिले. उन्हें ये जानकर bhaut khushi hui कि वो एक नॉवेलिस्ट है. दोनों ही आर्ट में गहरी दिलचस्पी रखते थे और यही वजह थी कि उनके बीच एक गहरा रिश्ता बन गया. जॉब्स ने मोना को उनकी बुक र्रीलीज़ में भी मदद की. दोनों एक दुसरे को बहुत पसंद करते थे और उनके बीच मज़बूत दोस्ती का रिश्ता बन गया.
इसी बीच जॉब्स ने क्रिसेन्न ब्रेनन और लिजा के लिए एक घर खरीदा जहाँ वे दोनों रहने लगी. जब लीज़ा वहां होती तो जॉब्स बीच-बीच में मिलने आते. जॉब्स ने कहा था” मै पिता नहीं बनना चाहता था इसलिए मै नहीं था”. जब लीज़ा 8 साल की हुई, जॉब्स का आना जाना और ज्यादा बढ़ गया. उन्होंने देखा कि लीज़ा पढ़ाई के साथ-साथ आर्ट में भी बहुत होनहार थी. लीज़ा उन्ही की तरह उत्साही थी और कुछ-कुछ उन जैसी ही दिखती भी थी.
एक दिन जॉब्स अपने साथियो को सरप्राइज़ देने के लिए लीज़ा को अपने साथ एप्पल के ऑफिस में लेकर गए. कभी –कभी वे उसे स्कूल से भी लेने जाते थे. और एक बार तो वे उसे अपने साथ टोक्यो की बिजनेस ट्रिप में भी लेकर गए. फिर भी ऐसा कई बार हुआ जब जॉब्स अपनी इन भावनाओ को प्रकट नहीं करते थे, जैसे जैसे वक्त बीतता गया, बाप बेटी का रिश्ता अनेक उतार-चढावो से गुजरा.

शादी

अक्टूबर, 1989 में जॉब्स की मुलाकात लोरीन पॉवेल से हुई. जॉब्स को स्टैंडफोर्ड युनिवेर्सिटी में लेक्चर के लिए इनवाईट किया गया था और पॉवेल तब नयी-नयी बिजनेस स्कूल ग्रेजुएट थी. वे दोनों लेक्चर के दौरान साथ बैठे थे. जॉब्स पहली नज़र में ही पॉवेल के प्रति आकर्षित हो गए थे. उन्होंने आपस में कुछ देर बातचीत की और फिर जॉब्स ने उन्हें डिनर के लिए इनवाईट कर लिया. 
लौरीन पॉवेल एक स्मार्ट, आत्मनिर्भर और पढ़ी-लिखी औरत थी. उनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर गज़ब का था और वे शाकाहारी थी. जॉब्स इससे पहले कई औरतो को डेट कर चुके थे मगर पॉवेल से उन्हें सच में प्यार हो गया था. दिसंबर 1990, में वे दोनों छुटिया बिताने के लिए हवाई गए. क्रिसमस पर जॉब्स ने पॉवेल को शादी के लिए प्रपोज किया.
और फिर मार्च 18, 1991 में योसमाईट नेशनल पार्क में वे दोनों शादी के बंधन में बंध गए. उस वक्त जॉब्स 36 साल के थे जबकि पॉवेल 27 की थी. करीब 50 लोग इस शादी में शामिल हुए थे जिनमे जॉब्स के पिता और उनकी बहन मोना भी थी. शादी के बाद ये जोड़ा पालो आल्टो के एक टू स्टोरी में शिफ्ट हो गया था. स्टीव और लौरीन के तीन बच्चे है पॉल रीड, एरीन सियेना और ईव.

Restoration

मैक के ग्राफिकल यूज़र इंटरफेस का पता लगाने में Microsoft को कुछ वक्त लगा. साथ ही कंपनी ने अब विंडोज 3.0.भी निकाला. विंडोज़ 95 के रिलीज़ के साथ ही Microsoft ne market ko dominate kar diya. ये अब तक का सबसे बढ़िया ऑपरेटिंग सिस्टम था. इस दौरान एप्पल की सेल लगातार घट रही थी.
जॉब्स को लगा कि स्क्ल्ली ने एप्पल को प्रॉफिट ओरिएंटेड बनाया है. वो मैक को अपग्रेड करके अफोर्डबल नहीं बना पाए थे. 1996 में एप्पल के मार्किट शेयर गिरकर 4% रह गए थे जोकि 1980 के आखिरी दशक में 16% थे. जॉब्स एप्पल के सीईओ CEO ज़िल एमेलियो से मिले. जॉब्स ने उनसे कहा कि एक नया प्रोडक्ट बनाकर वे एप्पल को बचाना चाहते है.
ये दिसंबर 20, 1996 की बात थी जब एमेलियो ने एक एडवाइज़र के तौर पर एप्पल में जॉब्स की वापसी की घोषणा की. अपने शानदार व्यक्तिव और तेज़ दिमाग बिजनेसमेन होने की वजह से जॉब्स ने बाद में एप्पल के सीईओ की जगह ले ली. एप्पल में उनकी वापसी का पहला साल बेहद मुश्किलभरा रहा. सभी पुराने बोर्ड मेम्बर जा चुके थे और उनकी जगह नए ढूढने पड़े. एप्पल को 1 बिलियन से ज्यादा का घाटा हुआ था.
सन 1997 में जॉब्स ने एप्पल के “Think Different” केम्पेन का खूब प्रचार किया. उन्होंने इसके लिए बेहतर मार्केटिंग और एडवरटाईजिंग पर जोर दिया. इस दौरान वे PIXAR, एप्पल और अपने परिवार के बीच एक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे. साल 1998 तक एप्पल ने एक बार फिर से $309 मिलियन का प्रॉफिट हासिल किया. जॉब्स और उनकी कंपनी, दोनों की गाडी एक बार फिर से पटरी पर दौड़ने लगी.
जब जॉब्स अपने 30वे साल में थे, एप्पल ने उन्हें कम्पनी से निकाल बाहर फेंका था. मगर उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने अपना सारा ध्यान अपने परिवार, पिक्सर और NeXT को दिया. अपने चालीसवे साल में टॉय स्टोरी बनाकर उन्होंने कामयाबी की ऊँचाई को छुवा. एप्पल में अपनी वापसी के साथ उन्होंने साबित कर दिया कि चालीस के पार की उम्र में भी लोग बहुत कुछ हासिल कर सकते है.
अपने बीसवे साल में स्टीव जॉब्स पर्सनल कंप्यूटर की दुनिया में एक क्रान्ति लेकर आये. उनका ये प्रयास संगीत, मोबाइल फोन्स, टेबलेट, एप्प्स, बुक्स और जर्नलिस्म के क्षेत्र में भी ज़ारी रहा.

आइ मैक और एप्पल स्टोर्स

साल 1998 में जॉब्स में Macintosh को iMac के साथ रीइन्वेंट किया. एक बार फिर उन्होंने प्रोडक्ट बनाया जो मोनिटर और कीबोर्ड के साथ एक मुक्कमल कंप्यूटर था. आइमैक को पूरी तरह से एक होम कंप्यूटर के रूप में बनाया गया था. जॉब्स ने प्रोडक्ट की लौन्चिंग Macintosh के साथ एक नए तरह के थियेटर में की थी. आइमैक को भी उन्होंने इसी तरह लांच किया. $1,299 की कीमत का आइमैक,एप्पल का हाथो-हाथ बिकने वाला प्रोडक्ट बन गया था. 
1999 में शहर की प्रमुख सडको या फिर किसी माँल में एक भी Tech स्टोर नहीं था. जॉब्स ने सोचा” आप तब तक कोई नयी इनोवेशन मार्किट में नहीं ला सकते जब तक कि आपकी पहुँच खरीददारों तक ना हो” तब उन्हें एप्पल के रिटेल स्टोर खोलने का विचार सूझा. एक दिन उनके एक साथी ने उनसे पुछा” क्या एप्पल भी Gap की ही तरह एक बड़ा ब्रांड है ?” जॉब्स ने जवाब दिया कि एप्पल उससे भी बड़ा ब्रांड है.
सबसे पहला एप्पल स्टोर मई, 2001 में वर्जीनिया में खोला गया. सफ़ेद रंग के काउंटर और वूडन फ्लोर वाले इस स्टोर में एप्पल के सभी प्रोडक्ट थे. साल 2004 तक एप्पल ने रिटेल इंडसट्री में $1.        2 बिलियन के मुनाफे के साथ एक रेकोर्ड बना लिया था. 2006 में एप्पल का पांचवा एवेन्यू स्टोर मेनहेट्टेन में खोला गया.इसमें जॉब्स के ट्रेडमार्क minimalist design from glass, क्यूब से लेकर स्टेयर केस तक थे. साल 2011 आते-आते पूरी दुनिया में एप्पल के 326 स्टोर खुल चुके थे.    

आइ ट्यून्स और आइ पोड
साल 2000 में अमेरिका में 320 मिलियन के करीब ब्लेंक सीडी बिकी. लोग सीडी से गाने अपने कंप्यूटर में डालते थे. जॉब्स म्युज़िक की दुनिया में भी कुछ नया करना चाहते थे. हालांकि उन्हीने मैक को सीडी बर्नर के साथ बनाया था मगर फिर भी वे कोई और आसान तरीका सोच रहे थे जिससे गाने सूनने के लिए म्युज़िक आसानी से कंप्यूटर में ट्रांसफर किया जा सके.
उस वक्त जो विंडोज का मीडिया प्लयेर था, वो जॉब्स को बहुत कोम्प्लीकेटेड लगा. इसी दौरान एप्पल के दो पुराने इंजिनियरो ने SoundJam नाम से एक म्युज़िक सॉफ्टवेयर तैयार किया. एप्पल ने उन्हें वापस कम्पनी में लिया और SoundJam को रीइन्वेंट करने के बाद आइ-ट्यून्स बनाया. जॉब्स ने आइ-ट्यून्स को जनवरी 2001 में इस स्लोगन के साथ लांच किया “Rip, Mix, Burn”
जॉब्स ने सोचा, म्युज़िक प्ले करने के लिए एक ऐसा पोर्टेबल डीवाइस हो जिसे आइ-ट्यून्स के साथ पार्टनर किया जा सके. जब वे जापान में थे तब उन्हें एक नए प्रोडक्ट के बारे में पता चल जिसे तोशिबा बना रहा था. सिल्वर कोइन जितना छोटा ये डीवाइस 5 जीबी यानी 1,000 गाने तक स्टोर कर सकता था. ये डीवाइस तोशीबा ने बना तो लिया था मगर उसका सही उपयोग जॉब्स को पता था.
और हमेशा की ही तरह जॉब्स चाहते थे कि जो भी एप्पल प्रोडक्ट बने वो इस्तेमाल में आसान हो. उन्होंने सोचा चूँकि आइ-पोड पहले से ही छोटा था तो प्लेलिस्ट को कंप्यूटर के साथ बनाया जाए. तब आइ-पोड को आइ-ट्यून्स की मदद से सिंक (sync) kiya जा सकता था. इसके बाद गानों के कॉपी राईट और आइ-ट्यून्स स्टोर्स के लिए जॉब्स कुछ बड़ी म्युज़िक कंपनियों से मिले.

कैंसर
ये अक्टूबर 2003 की बात थी जब स्टीव जॉब्स को पता चला कि उन्हें कैंसर है. उन्हें पहले एक बार किडनी स्टोन हो चूका था इसलिए तस्सली के लिए वे सिर्फ केट (CAT ) स्केन के लिए गए थे. मगर जांच करने पर डॉक्टर को पता लगा कि उनके पेनक्रियाज़ में ट्यूमर था. जॉब्स की बायोप्सी की गयी जिससे ये पता चला कि ट्यूमर निकाल कर कैंसर को शरीर में फैलने से रोका जा सकता है.
मगर जॉब्स सर्जरी नहीं कराना चाहते थे. इसके बदले उन्होंने पूरी तरह से Vegetarian ho kar एक्यूपंक्चर इलाज़ का सहारा लिया. हालांकि उनकी पत्नी और दोस्त उन्हें सर्जरी करवाने के लिए मनाते रहे ki unhe सच में ओपरेशन की ज़रुरत है, ये बात समझने में उन्हें 9 महीने लगे.
जुलाई 2004 में जॉब्स ने अपना दूसरा केट CAT स्केन करवाया. ट्यूमर बढ़ चूका था. मजबूरन उन्हें सर्जरी करवानी पड़ी और इसमें उनके पेनक्रियाज़ का एक हिस्सा निकाल दिया गया. वे सितम्बर से वापस अपने काम पर जाना चाहते थे मगर बदकिस्मती से उनका कैंसर पूरी तरह उनके शरीर में फ़ैल चूका था. जॉब्स की कीमोथेरेपी चलती रही.
जब उन्हें स्टेंडफोर्ड के कमेंसमेंट एक्सरसाइज़ के लिए इनवाइट किया गया तो जॉब्स ने अपने कैंसर के ठीक हो जाने की घोषणा की. साल 2005 में उनकी पत्नी ने उनके जन्मदिन पर एक सरप्राइज़ पार्टी रखी. उन्होंने अपना 50वा जन्मदिन अपने परिवार, दोस्तों और साथियो के साथ मिलकर मनाया.

आइ-फोन
सारी दुनिया आइ-पोड की दीवानी हो गयी थी. साल 2005 तक ये एप्पल का कुल 45% रीवेन्यु कमा रहा था. और हमेशा की ही तरह जॉब्स कुछ और इनोवेट करने में लगे थे. उन्होंने अपना ये तर्क बोर्ड के सामने रखा कि जो कभी डिजिटल केमरा के साथ हुआ वो आइ-पोड के साथ भी हो सकता है. इस समस्या से निपटने के लिए एप्पल को अपना खुद का फोन बनाना ज़रूरी था जिसमे इन-बिल्ट केमरा के साथ-साथ म्युज़िक प्लेयर भी हो.
उन्होंने इस बारे में सोचा और मोटोरोला के साथ टाइ-अप करने के लिए नेगोशिएट किया. मगर जॉब्स पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाए. उन्हें मार्केट में उपलब्ध एक भी सेल फोन पसंद नहीं आया. इसके अलावा जॉब्स अपने फ़ोन के लिए एक पोटेंशियल मार्केट भी सोच रहे थे. 
जॉब्स किसी को जानते थे जो माइक्रोसॉफ्ट के लिए टेबलेट पीसी बना रहा था. जो इंजीनियर इसे बना रहा था वो इसके बारे में क्लासीफाइड जानाकरी दे रहा था. माइक्रोसॉफ्ट का ये टेबलेट स्टाइल्स के साथ आता था. लेकिन जॉब्स ने अपने इंजीनियर्स से पुछा कि क्या वे ऐसा एप्पल प्रोडक्ट बना सकते है जिसमे टच-स्क्रीन हो. जब आइ-फोन का डिजाईन तैयार करके उनके सामने पेश किया गया, जॉब्स ने कहा…..” यही फ्यूचर है”.

कैंसर की वापसी

2008 तक जॉब्स का कैंसर बुरी तरह उनके शरीर में फ़ैल चूका था. असहनीय दर्द के अलावा उन्हें इटिंग डिसऑर्डर से भी जूझना पड़ रहा था. जॉब्स को जवानी के दिनों में अक्सर खाली पेट रहने और एक्सट्रीम डाईट की आदत थी. कैंसर की लाइलाज बिमारी में भी वे खाने के प्रति लापरवाह थे. उस साल जॉब्स का वजन लगभग 40 पाउंड घट गया था.
जब वे आइ-फोन 3G को दुनिया के सामने लेकर आये तो मीडिया ने उनके वजन कम होने पर ज्यादा interest dikhaya. सिर्फ महीने भर में ही एप्पल के स्टोक घटने लगे थे. आखिरकार जॉब्स को जनवरी 2009 में मेडिकल लीव पर जाना पड़ा. उसके दो महीने बाद ही उनका लीवर ट्रांसप्लांट का ओपरेशन हुआ. उनके लीवर में ट्यूमर पाया गया और डॉक्टर इस बात से और चिंतित हो गए थे.
जॉब्स के मेडिकल लीव पर जाने पर एप्पल के मेनेजमेंट में कुछ अरेंजमेंट किये गए. धीरे-धीरे स्टॉक प्राइस कुछ सुधरे. एक कोंफ्रेंस काल के दौरान, ओपरेशन मेनेजर टीम कुक ने कहा” हमें इस बात का यकीन है कि हम इस दुनिया में सिर्फ महान प्रोडक्ट बनाने के लिए है और ये हमेशा होता रहेगा. यहाँ कौन क्या काम कर रहा है, इस बात की परवाह किये बगैर हमारा सारा ध्यान सदा इनोवेटिंग पर रहा है. ये वेल्यूज़ कंपनी के साथ इस कदर जुड़े हुए है कि एप्पल हमेशा बेहतरीन करता रहेगा”.  जॉब्स हालांकि बीमारी में भी शांत नहीं थे. उनका जुझारूपन अभी कायम था. साल 2010 में वे ठीक होकर फिर से एप्पल आने लगे थे. कैंसर भी उन्हें रोक नहीं पाया और उन्होंने आइ-पेड के बाद आइ-पेड 2 और आइ-क्लाउड डेवलेप किया.

  
आखिरी बोर्ड मीटिंग

ये साल 2011 था जॉब्स को उनके डॉक्टर्स ने बताया कि ट्यूमर उनकी हड्ड्यों और बाकी ओरगंस में भी फ़ैल चूका था. इसके साथ ही दर्द, वजन घटना, इटिंग डिसऑर्डर, नींद ना आना और मूड स्विंग्स जैसी अन्य परेशानियो से उनकी हालत बदतर होती जा रही थी. ऐसे कई प्रोजक्ट थे जिन्हें जॉब्स पूरा करना चाहते थे मगर अपनी बिमारी की वजह से उन्हें अपने परिवार की देख-रेख में घर पर बैठना पड़ रहा था.
अगस्त में जॉब्स ने लेखक Issacson को मैसेज करके उनसे मिलने की गुज़ारिश की. वे Issacson को अपनी बायोग्राफी के लिए कुछ फ़ोटोज़ दिखाना चाहते थे. उन्होंने हर तस्वीर के पीछे की कहानी उन्हें बताई और बिल गेट्स से लेकर प्रेजिडेंट ओबामा तक उन सब लोगो के बारे में बताया जिनसे वे मिले थे. जॉब्स का शरीर भले ही बहुत कमज़ोर हो गया था मगर उनका दिमाग अभी भी तेज़ चलता था.
जब आईजेकसन जाने लगे तो जॉब्स ने अपनी बायोग्राफी को लेकर चिंता जताई. लेकिन फिर उन्होंने लेखक से कहा “ मै चाहता हूँ कि मेरे बच्चे मेरे बारे में जाने. क्योंकि मै उनके साथ ज्यादा वक्त नहीं बिता पाया. मै चाहता हूँ कि जो कुछ भी मैंने किया, वे उसके बारे में जाने. एक वजह और भी है. जब मै नहीं रहूँगा तो लोग मेरे बारे में लिखना चाहेंगे. हालांकि वे मेरे बारे में कुछ नहीं जानते तो जो कुछ भी लिखा जाएगा सब गलत होगा. इससे बेहतर है कि मै अपनी बात खुद की कह सकूँ”.
जॉब्स की आखिरी बोर्ड मीटिंग 24 अगस्त ko थी. उन्होंने इस मीटिंग में वो लैटर पढ़ा जिसे वे हफ्तों से रीवाइज़ कर रहे थे. इसमें लिखा था” मैं हमेशा से ही कहता आया हूँ कि कभी अगर मै एप्पल के सीईओ CEO की हैसियत से अपना फ़र्ज़ और इस कम्पनी की उम्मीदों पर खरा उतरने लायक ना रह पाऊं तो ये बात आप लोगो को सबसे पहले मै खुद बताऊंगा, और अफ़सोस की बात है कि वो दिन आज आ गया है”.


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